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Tuesday, August 23, 2011
करवटों के सहारे...
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है
तन्हाई में मेरी, सुबह जीती है ...
वो चैन से सोता है , मुंह उधर कर
रोजाना मेरी आँखे , मेरे अश्क पिती है ||
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ...
ये किस मोड़ पर मेरा जीवन ,
कि मेरा अपना कुछ ना रहा ...|
ना आँखों में सपने रहे , ना सपनों का राजा,
अब मैं भी ना रहूँ ....?
क्या यही है वक्त का तकाजा ?
हर रोज उधेड़ जाता है, वों जख्म मेरे ...
जिन्हें कितनी मुश्किल से, काली रातें सीती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
चारों और इतना अँधेरा क्यूँ है ?
मेरा गम इतना गहरा क्यूँ है ?
जिसमें बसती थी, रूह मेरी
वों बिन मेरे भी , पूरा क्यूँ है ?
ना जानें भाग्य कि कैसी "नीयती है
सब कुछ पा कर भी , जिन्दगी रिती है
करवटों के सहारे.. हर रात बीती है ||
Wednesday, August 10, 2011
बंद झरोखे से "सपनें"
कुछ "सपनें" भी बंद झरोखे से है ....
जिनकें कपाटों को गर खोल दिया तो
तूफ़ान सा आ जाएगा ||
"ताश के पत्तों सा जीवन"
बिखर जाएगा ...
पर आंधी के डर से
कब तक बंद रखा जा सकता है
दरवाजों को ?
"धुप" का इंतज़ार भी तो है
"सीली" हुई सी "दीवारों" को ...
और अँधेरे के खात्मे के लिए
कुछ "रौशनी" भी तो चाहियें ||
और कुछ "ताज़ी हवा" कि भी
दरकार है जीने के लिए ...||
Saturday, August 6, 2011
दोस्त हैप्पी फ्रेंडशिप डे
कभी हँसाता है, कभी रुलाता है ,
ये, वो रिश्ता है, जो जीना सिखाता है ||
कच्चे धागे में, अनमोल मोती सा ...
चाहे मीलों दूर ही सही, पर आँखों कि ज्योति सा ...
कभी सच्चा सा , कभी झूठा सा ...
कभी हमें मनाता, मिन्नतें कर के, कभी हमसे ही रूठा सा ...
मेरे अधूरे सपने वो अपनी पलकों पे सजाता है ...
अक्सर मेरी परछाई में, वो अपना अक्स दिखाता है,
ये वो रिश्ता है, जो जीना सिखाता है ||
कभी आभास सा , कभी अहसास सा
टेड़ा मेडा जलेबी कि तरह, पर शहद कि मिठास सा
उडती पतंग कि डोर सा , सुरीले संगीत के शौर सा ..
मेरे रुके कदम को वो अपने होसलों से चलाता है
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारें जिसकी तलाश में हम घूमें ..
वो खुद, दोस्त बन के हमारी जिन्दगी में आता है
ये रिश्ता जीना सिखाता है
ये, वो रिश्ता है, जो जीना सिखाता है ||
कच्चे धागे में, अनमोल मोती सा ...
चाहे मीलों दूर ही सही, पर आँखों कि ज्योति सा ...
कभी सच्चा सा , कभी झूठा सा ...
कभी हमें मनाता, मिन्नतें कर के, कभी हमसे ही रूठा सा ...
मेरे अधूरे सपने वो अपनी पलकों पे सजाता है ...
अक्सर मेरी परछाई में, वो अपना अक्स दिखाता है,
ये वो रिश्ता है, जो जीना सिखाता है ||
कभी आभास सा , कभी अहसास सा
टेड़ा मेडा जलेबी कि तरह, पर शहद कि मिठास सा
उडती पतंग कि डोर सा , सुरीले संगीत के शौर सा ..
मेरे रुके कदम को वो अपने होसलों से चलाता है
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारें जिसकी तलाश में हम घूमें ..
वो खुद, दोस्त बन के हमारी जिन्दगी में आता है
ये रिश्ता जीना सिखाता है
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