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Monday, November 12, 2012

रस्म निभाने के लिए दिवाली है ...

"
अपने घर का कचरा , सड़क पे डालने के लिए 
दिवाली है ...
मिलावट की मिठाइयाँ , गरीबों को बांटने के लिए 
दिवाली है ..

बेजुबान जानवरों को सताने के लिए 
दिवाली है 
फटाके फोड़ के , प्रदुषण फ़ैलाने के लिए 
दिवाली है ..

गर सरकारी अफसर हो आप तो 
जम कर खाने , के लिए दिवाली है ...
गर हो दुकानदार, तो थोडा बहुत 
कमाने के लिए दिवाली है ...

अजनबियों से मेल मिलाप बढ़ाने के लिए
दिवाली है 
"दीया तले अँधेरा" यह जताने के लिए 
दिवाली है ...

दीप नहीं, दिल जल रहें है, ये बताने के लिए 
दिवाली है ..
चकाचौंध से लोगो को भरमाने के लिए 
दिवाली है ..

साल भर के गम छुपा के , दो दिन मुस्कराने के लिए 
दिवाली है ...
ना वनवास ख़त्म करने की चाह है , और ना ही राम बनने की ललक 
अब तो सिर्फ और सिर्फ रस्म निभाने के लिए 
दिवाली है ...||

Saturday, September 29, 2012

खाली हाथ ...



सूरज आता खाली हाथ ... चाँद खाली हाथ जाता है 
कुछ खुशियाँ खोजने में ...पूरा दिन निकल जाता है ||


इस कद्र पड़ी है महंगाई की मार सब पर 
अब आम दिनों सा... त्यौहार निकल जाता है ..||

झूठे वादें झूटी कसमें और बेफिजूल की रस्में 
इन्ही चक्करों में सबका संसार निकल जाता है ||

जेब में जब आ जाता है गाँधी उनके ..
मन से उनके गाँधी बनने का विचार निकल जाता है||

लाख चाहता है हर एक ..."अन्ना" के रास्ते पर चलना 
पर जिन्दगी की रेस में ..आगे... भ्रष्टाचार निकल जाता है ||

चारों और से मजबूर आँखें ....जब शौर करती है 
तब वो आँख पर पर्दा कर ....घर से बाहर निकल जाता है ||

चाहता तो  मैं भी हूँ उसके लिए ताजमहल बनवाना 
कांग्रेस के दौर में फटी जेब से... सारा प्यार निकल जाता है :)

Wednesday, July 25, 2012

आखिर क्या देख रहा है ?


गुवाहटी कि शर्मनाक घटना के बाद , यशवंतपुर मैसूर ट्रेन में एक लड़की के साथ वही हरकत दोहराई गयी , लेकिन समाज मीडिया और आम जन सिर्फ ख़ामोशी से तमाशा देख रहें है :) जागो इंडिया जागो ||

जिस के आँचल में पल कर.. बड़ा हुआ जग  
आज उजड़ता हुआ उसका बदन , तार तार देख रहा है 

दिमाग  पर काला चश्मा लगा कर 
 हर व्यक्ति ये समाचार देख रहा है ?

वो जो शख्स आँखों से , स्त्री पर अत्याचार देख रहा है
वो अपनी ही  मौत का इंतजार देख रहा है !!

दूध का कर्ज चुकाएगा क्या कोई ?
यहाँ हर शख्स स्त्री का व्यपार देख रहा है ||

मंदिर में देवी को पूजने वालों , बंद करों ड्रामा 
तुम्हारा असली चेहरा, सारा  संसार देख रहा है 

हर पुरुष के रगों में स्त्री के खून का कतरा ?
आज खुद से खुद का ही,  बलात्कार देख रहा है ?

चुल्लू भर पानी ना मिले , तो चूड़ियाँ पहन लो 
वो हर शख्स जो मजे से, शिकार देख रहा है | 

independent देश के वीर जवान impudent हो गयें है ? 
अँधा समाज/ कानून  एक जैसी हरकतें बार बार देख रहा है |

वो जो शख्स खुली आँखों से , स्त्री पर अत्याचार देख रहा है 
वो अपनी ही  मौत का इंतजार देख रहा है !!


Monday, July 23, 2012

पांचवी गजल

उसकी हर हरकत का हिसाब रखते है
हम दिल में,  मोहब्बत की किताब रखतें है !!

वो चेहरे पर चाँद लिए घुमती है
हम आँखों में.. हमेशा रात रखतें है |

जब भी मिलें हमसे ..बैचैनी से मिलें वो
इसलिए हर बार, अधूरी मुलाक़ात रखतें है ||

पतझड़ में भी सावन सी बदली हो जाये
अपने शब्दों में... हर वो बात रखते है ||

कुछ थामना चाहेगी , जब थक जायेगी ज़माने से
इसलिए , हम ...हमेशा ...खाली हाथ... रखतें है

जाने कब उसकी पलकों से उतर आयें जिन्दगी
एक अधुरा ख्वाब  हमेशा साथ रखतें है !!

उसकी हर हरकत का हिसाब रखते है
हम दिल में,  मोहब्बत की किताब रखतें है !!

Monday, July 16, 2012

माँ ... मुझे ना दे जन्म ...


माँ 
मुझे ना दे जन्म ...
मैं यूँ मर मर के,  जी ना पाउंगी 
अच्छा होगा यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....

माँ , जब चाहा पापा ने अपना गुस्सा तुझ पर उतारा 
वजह- बेवजह तुझ को मारा !!
तू चुप कर के , जो सहती है , मैं सह ना पाउंगी 
अच्छा होगा,  यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....

माँ,  जब तू ऑफिस से आने में दो घंटे लेट हो जाती है 
घर पर सब का पारा गर्म हो जाता है 
हजारों अनचाहे सवालों का जन्म हो जाता है 
तू जिन सवालों को सुलझाती है , मै सुलझा ना पाउंगी 
अच्छा होगा , यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....

माँ , गैर मर्दों की आँखों में , तेरा वहशियत को पढना 
रात में, सडक पर तेरा,  तेज क़दमों से चलना 
तू जितना डर कर चली है , मैं चल ना पाउंगी 
अच्छा होगा,  यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....

माँ कहने को तो सांस लेने का अधिकार है तुझे 
पर किसे पता है , कितना कर्ज दिल पर रख कर, तू मुस्कराती है ?
अपनों का भविष्य बनाते बनाते, खुद मिट जाती है !!
तुने खोया अपना वजूद , मै खुद को खो ना पाउंगी !
अच्छा होगा, यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....
माँ,  मैंने देखा है,  हर बार तुझे ...अपने मन को मारते हुए 
अपनों के हाथों ही हारतें हुए !!
हर कदम पर समाज-घर वालों का.. तुझे टोकते हुए  !
अपनी हर इच्छाओं को, खुद से रोकतें हुए !!
मैंने देखा है तुझे ...
अपने सपनों को खोते हुए , अक्सर छुप छुप कर रोते हुए,
 "स्त्री होने का एक अनचाहा बोझ ढोतें हुए" 
 तू जितना डर कर जी ली है,  मै जी ना पाउंगी 
अच्छा होगा , यदि कोख में ही मर जाउंगी !! :).....
 

Monday, July 9, 2012

उसकी शादी हो गई है !!


खेलती थी कूदती थी 
अपने मन की करती थी 
तितली सी थी ..
अपने बाग़ में इधर उधर उडती रहती थी ||
कुछ दिनों से वो गुमसुम है ... चुप चुप है 
लोग कहते है वैसा करती है 
देर रात को सोती है ...सुबह जल्दी उठती है |
कुछ आवाजें उसे .... ..अक्सर टोकती रहती  है ||
 वो ना जाने क्या क्या सोचती रहती है !!
 
खोने की उम्र है,  पर सब कुछ संभाल रही है 
खुद को नये संस्कारों में ढाल रही है 
अपने आप को फिर से खंगाल रही है ||
 
अपने में ही कैद हो कर रह गई है ||
मासूम सी तितली , नये बाग़ में आ कर, खो गई है 
कुछ दिन पहले उसकी शादी हो गई है :)

Sunday, June 17, 2012

कुछ लिखना है , ऐसा...

कुछ लिखना है , कुछ ऐसा , जो अब तक ना लिखा गया हो 
कुछ ऐसा , जो अब तक ना ही कहा गया हो , ना ही सुना गया हो 
कुछ ऐसा लिखना है,  जिसे पढ़ कर काम क्रोध मोह माया सब शांत हो जाएँ 
कुछ ऐसा लिखना है,  की "सपनों में ही ,  हकीकत वाली रात हो जाए 
............. चंद शब्दों में ही सारी बात हो जाए ||

कुछ लिखना है , ऐसा,  उस गरीब के लिए दो वक्त की रोटी जैसा 
कुछ लिखना है छोटा ..सुई की छेद की तरह ,
पर जिस का आकार हो ...हिमालय की चोटी जैसा |
कुछ लिखना है.. सीप में मोती जैसा ...
कुछ लिखना है , बंजर में बारिश की तलाश सा , समन्दर को मीठे पानी की प्यास सा 
कुछ लिखना  है , बूढी आँखों के लिए ...बेटे की आस सा
कुछ लिखना है मौत के लिए , जिन्दगी जैसा खास सा |  
कुछ ऐसा लिखना है की बंजर भूमि पर खुशियों की बरसात हो जाए  
ग़मों की आखरी रात हो जाए .....
......चंद शब्दों में ही सारी बात हो जाए ||

मेरे शब्दों को बेहद खास कर दे , 
आ इनमे अपने अहसास भर दे |

Saturday, May 26, 2012

लघु कथा :- महंगाई



पापा कितनी महंगाई है , और देखो , सरकारी अफसरों का महंगाई भत्ता बढ़ गया है , पापा कल मुझे अपने दोस्तों की पिक्चर दिखाने ले जाना है तो मेरी पॉकेट मनी भी जरा बढ़ा दो अब , और सुनिए जी मेरी किटी पार्टी वालों ने , घुमने जाने का प्लान बनाया है , तो मुझे भी इस बार दो हजार रुपये ज्यादा चाहिए | और हाँ एक नयी साडी तो बनती है, सेलरी बढ़ने की ख़ुशी में...क्यूँ बेटी ?
हाँ माँ , और मुझे भी नया मोबाइल चाहिये |

इतने में माँ का फ़ोन आता है , पिछले कई सालों से , माँ को सिर्फ पांच सौ रुपये महीने दिए जा रहें है , माँ को ख़ुशी हुई की बेटे की सेलेरी बढ़ गयी है , माँ ने फोन पर बेटे को बधाई दी , सेलेरी बढ़ने की | बेटे ने माँ को कहा ...माँ , इस महीने पांच सौ रुपये भेज नहीं पाऊंगा , थोडा खर्चा ज्यादा हो रहा है इस महीने , तू एडजस्ट कर लेना , माँ : - बेटा पिछले महीने भी तुने पैसे नहीं भेजे थे , और इस महीने तो सेलेरी बढ़ी है,

बेटा : माँ पैसे पेड़ पर नहीं उगते , सेलेरी बढ़ी है , तो महंगाई कितनी है , यहाँ तो बात - बात के पैसे लगते है , तुम्हरा दो लोगो का वहां खर्चा ही क्या है ?
नहीं इस महीने पैसे नहीं भेज सकता और फ़ोन काट दिया |

इधर उस बूढी माँ ने , साडी वाले से कहा, भैया पांच साडी ज्यादा दे दो , मै शाम तक फोल लगा कर भिजवा दूंगी , और वो हिसाब लगाने लगी की दस साडी की , फोल से , मिलने वाले 75 /- रुपये से दो दिन का गुजारा, तो हो ही जाएगा :)



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आज से हम इस ब्लॉग पर स्वरचित लघु कथाओं को जगह दे रहें है , लघु कथा नाम से टेग में आप को ये कहानियां पढने मिलेगी , आशा है आप इन कहानियों को पढेंगे और दिल से इसके दर्द को महसूस करेंगे , धन्यवाद :) आप के स्नेह  की अपेक्षा में हमेशा... :) 
दिल की कलम से ... 

तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी


तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ 
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |
तुझ को देख  कर ...किया था वादा ...हमेशा मुस्कराने का 
बस वोही  अधूरी मोहब्बत ...अब तक ....निभाए जा रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ....खाए जा रहा हूँ |

चाँद को देखा नहीं , तेरे चेहरे को देखने के बाद
चांदनी रात में सिर्फ , तारों से काम चला रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ....खाए जा रहा हूँ |
यूँ अकेले अकेले जीना भी कोई  जीना है ? 
जिन्दा हूँ... खुद को भरमाये जा रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ 
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |

Monday, April 30, 2012

मजदूर या मजबूर दिवस



सर पर तगारी, या हाथ में फावड़ा 
हमेशा वो दिखा मुझे , धुप से लड़ता हुआ 
अपने से , चौगुना वजन लिए 
गर्म सडक पर नंगे पैर , सरपट बढ़ता हुआ | 
 
अपने पेट की अग्न को , शांत करने खातिर 
खुद से हमेशा लड़ता हुआ ..
वातानुकूलित भवनों में रहने वाले, लोकतंत्र से 
थोडा सहम थोडा डरता हुआ .. :(
इस महंगाई के महादानव से 
तिल तिल कर मरता हुआ |
हमेशा दिखा मुझे,  वो मजदुर , "मजबूर" 
मौत में जिन्दगी भरता हुआ ||

चाहें लग जाए सावन या चल रहा हो वसंत
पर हमेशा पतझड़ की तरह झरता हुआ |
मजदुर दिवस के दिन भी 
मजदूरी करता हुआ || 
मजदुर दिवस के दिन भी 
मजदूरी करता हुआ || 
 
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