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Friday, September 20, 2013

डायरी का आज का पन्ना , "चाँद को न पाने की कसक"

पूनम का चाँद था छत पर
छूने को दौड़ पड़ा
पर भूल गया था की यह भी
सूरज की बिरादरी का है !

अब हाथ जला बैठा हूँ
और ये छाले, दिमाग की एक नस को
उम्र भर तननाए रखेंगे !

चाँद, खुबसूरत दूर से ही है
पास जाओगे गड्डों, में समा जाओगे
इतनी जिद मत करो उसे जानने की उसको पाने की
कहीं ऐसा न हो , तुम्हरा भविष्य चाँद से मरहूम रह जाये

Wednesday, September 11, 2013

फिर तेरी कहानी याद आई




तुम्हे याद करने के, बहाने निकले है
फिर कुछ गीत, पुराने निकलें है |

कागज , कलम , लफ्ज लिए हाथ में मैंने
हम फिर से , तुझ पर गजल बनाने निकलें है |

तेरी तस्वीर को यूँ ही नहीं छुपाया किताब में
तुझे ज़माने की नजरों, से बचाने निकलें है |

पीता नहीं हूँ, पर मयखाने का पता जानना है
क्यूंकि यारों की महफ़िल, सजाने निकलें है |

बन्दुक ली है , रखा सिन्दूर भी है हाथ में
जरुर कोई रस्म निभाने निकलें है |

तुम्हे याद करने के, बहाने निकले है
फिर कुछ गीत, पुराने निकलें है |
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